ममता की मूरत,
प्रेम की अभिव्यक्ति,
संसार की शक्ति,
स्वयं तुम संसार हो,
अम्मा तुम कितनी उदार हो...
Happy Mother's Day 2021
द्वारा - दिलीप मिश्रा
अम्मा तुम कितनी उदार हो....अम्मा तुम इतना क्यों सहेज कर सब चीजें रखती हो ? कभी अमरुद के पेड़ में फल लगतें हैं तो तुम उन्हें तोड़ती नहीं हो ,अगर कोई पूंछता है की ये किसके लिए सहेज कर रखी हो तो तुम्हारी आँखों में नीर की झिरन सी होने लगती है और फफकते हुए लड़खड़ाते स्वरों में कहती हो मैं अपने बहू -बेटों के लिए सहेज कर राखी हूँ ...वो आएंगे शहर से गाँव...इसी तरह अम्मा चने को पीसकर बेसन बनती है,दूध से दही और दही से छांछ बनाती है ,क्योंकि उसके बड़े बेटे को कढ़ी बहुत पसंद है ,अषाढ़ के महीने में आँगन में मक्का लगाती है क्योंकि उसके मझिले बेटे को मक्का बहुत पसंद है , दिन में चावल -दाल बनाती है और चूल्हे की धीमी आंच में रात तक के लिए रख देती है सोचती है कहीं मेरा छोटा बेटा न आ जाये क्योंकि उसके छोटे बेटे को चावल-दाल बहुत पसंद है ..
घर में दो -तीन गुदड़ियाँ थीं अम्मा ने उसके बदले में घी रखने के लिए बरनी लेली ,स्वयं दूध पीती नहीं उसका घी बनती है बहू - बेटों के लिए ..अम्मा तुम बहुत कमजोर हो गई हो कुछ खाया -पिया करो थक जाती हो फिर भी घर आंगन को पोतती रहती हो ,झाड़ू लगाती रहती हो ,वर्तन साफ करती रहती हो ,हाँथ में चार्म रोग है फिर भी गोबर पथ कर कंडे बनती रहती हो और दवा करवाने का जिक्र भी नहीं करती हो...दिन भर की भाग -दौड़ में थक कर रात में सोने जाती हो ,थोड़ी संतुष्ट सी लगती हो लेकिन नीद नहीं आती थोड़ी झपकी लगी भी तो खपरैल घर में चूहे -बिल्ली आवाज करते हैं जैसे ही आवाज सुनती हो तो उठ बैठती हो और सोचती हो कहीं मेरे बेटे दरवाजा तो नहीं खटखटा रहे हैं ...इतनी आश लगा के क्यों बैठी हो अम्मा ? आज-कल के बहु -बेटों को तो पता ही नहीं की उनके लिए तुम जन्म से ही सहेजती चली आ रही हो...अम्मा तुझे तेरे बहू -बेटे भूल गए क्योंकि वे गाँव के कीचड़ से शहर की साफ -सुथरी गलियों में रहने लगे हैं... तू कहाँ देहाती अम्मा ,वो तो शहरी कालेजी कहलाते हैं..अम्मा तुम अमरुद ,बेसन ,मक्का ,और घी सहेज कर रखी हो ,आज-कल के बहू -बेटों को ये पसंद नहीं है ,आज-कल के बहू- बेटों को तो सिगरेट,शराब ,धोखा,झूंठ और बदचलनी बहुत पसंद है ये इनका रोज नास्ता करते हैं, अंग्रजी में ये लोग इसे बब्रेकफास्ट कहते हैं ...अम्मा तू ये सब सहेजना छोड़ दे और राम नाम का सुमिरन कर इस मोह - माया में मत पड़ आज तू ये सब जिसके लिए सहेज रही है वो तेरे जाने के बाद तेरा सारा सामान गन्दी नालियों में फेंक देंगे सिवाय सोने की मोहरों के और कहेंगे यहाँ गंदगी फैला कर चली गई ...ये सब जानते हुए भी तेरी आत्मा बहू - बेटों से मिलने के लिए ललकती है...अम्मा ये तेरी उदारता नहीं तो और क्या है ? अम्मा मैं व्यग्र असंख्य वार तुझे नमन करता हूँ |
द्वारा-दिलीप मिश्रा मातपुर
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